सुन्दरकाण्ड पाठ (Sunderkand Path) Hindi PDF Download :-
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PDF Name | सुन्दरकाण्ड पाठ (Sunderkand Path) |
Language | Hindi |
PDF Category | Religion Spirituality |
Source / Credits | pdfhai.com |
सुन्दरकाण्ड पाठ हिंदी:- (SunderKand Path Gorkhpur Hindi)
सुन्दरकाण्ड पाठ (Sunderkand Path) का यदि आप अध्ययन करना चाहते हैं तथा आप बजरंगबली के भक्त है तो आप सही जगह आए हैं जहां पर कि आप आसानी से हिंदी में डाउनलोड कर सकेंगे
जिसमें आपको हनुमान जी के संपूर्ण कथाओं का वर्णन किया गया है जिसका अध्ययन करने के बाद आपको सुख और शांति की प्राप्ति होगी
यदि आप एक नवयुवक व्यक्ति है तो यदि आप इस पाठ का अध्ययन करेंगे तो आपको बुद्धि बल तथा धन की प्राप्ति होगी
यदि आप एक वृद्ध व्यक्ति है तो सुंदरकांड पाठ का अध्ययन करने से आपको सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होगी तथा आप अपने किए गए संपूर्ण पापों से मुक्ति पा सकेंगे
सुंदरकांड के पाठ में लिखा गया है कि यदि आप बजरंगबली को सिंदूर चढ़ाएंगे तो आपकी संपूर्ण मनोकामनाएं पूरी होंगी
क्योंकि जब हनुमान जी ने माता सीता को सिंदूर लगाते देखा तो उन्होंने पूछा की माता यह आप क्यों लगाती हैं जिसे सुन माता सीता ने बोला कि इसे लगाने से प्रभु श्री राम की आयु बढ़ेगी
इस बात को सुनकर हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर में सिंदूर लगा लिया जिसे देख प्रभु श्री राम जी द्वारा उन्हें वरदान दिया गया कि जो भी हनुमान जी को सच्चे मन से सिंदूर चढ़ेगा उनकी संपूर्ण मनोकामनाएं पूरी होंगी
सुंदरकांड का पाठ प्रत्येक मंगलवार या शनिवार को किया जाता है जिसे आप अकेले या समूह में एक लययुक्त कर सकते हैं जिसका पाठ करने से हनुमान जी की आपके ऊपर हमेशा कृपा बनी रहेगी
तथा आप अपने प्रत्येक कार्यों में सिद्धि प्राप्त कर सकेंगे तथा आपका प्रत्येक कार्य मंगलमय होगा यदि आप सुंदरकांड का पाठ नियमित रूप से करेंगे तो आपके जीवन के संपूर्ण कष्ट एवं बाधाएं दूर हो जाएंगी
सुन्दरकाण्ड पाठ हिंदी अर्थ सहित | Sunderkand Path by Geeta Press Gorakhpur Hindi
1 – जगदीश्वर की वंदना
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं
हरिं वन्देऽहंकरुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम् ॥1॥
भावार्थ: शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ .
2 – रघुनाथ जी से पूर्ण भक्ति की मांग
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितंकुरु मानसं च ॥2॥.
3 – हनुमान जी का वर्णन
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तंवातजातं नमामि ॥3॥
भावार्थ: अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान् जी को मैं प्रणाम करता हूँ .
4 – जामवंत के वचन हनुमान् जी को भाए
चौपाई:-
जामवंत के बचन सुहाए,
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई,
सहि दुख कंद मूल फल खाई ॥1॥
भावार्थ: जामवंत के सुंदर वचन सुनकर हनुमान् जी के हृदय को बहुत ही भाए। (वे बोले-) हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना
5 – हनुमान जी का प्रस्थान
जब लगि आवौं सीतहि देखी,
होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा,
चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा ॥2॥
भावार्थ: जब तक मैं सीताजी को देखकर (लौट) न आऊँ। काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। यह कहकर और सबको मस्तक नवाकर तथा हृदय में श्री रघुनाथजी को धारण करके हनुमान् जी हर्षित होकर चले
6 – हनुमान जी का पर्वत में चढ़ना
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर,
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी,
तरकेउ पवनतनय बल भारी ॥3॥
भावार्थ: समुद्र के तीर पर एक सुंदर पर्वत था। हनुमान् जी खेल से ही (अनायास ही) कूदकर उसके ऊपर जा चढ़े और बार-बार श्री रघुवीर का स्मरण करके अत्यंत बलवान् हनुमान् जी उस पर से बड़े वेग से उछले
7 – पर्वत का पाताल में धसना
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता,
चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना,
एही भाँति चलेउ हनुमाना ॥4॥
भावार्थ: जिस पर्वत पर हनुमान् जी पैर रखकर चले (जिस पर से वे उछले), वह तुरंत ही पाताल में धँस गया। जैसे श्री रघुनाथजी का अमोघ बाण चलता है, उसी तरह हनुमान् जी चले
8 – समुन्द्र का हनुमान जी को दूत समझना
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी,
तैं मैनाक होहि श्रम हारी ॥5॥
भावार्थ: समुद्र ने उन्हें श्री रघुनाथजी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो (अर्थात् अपने ऊपर इन्हें विश्राम दे)
सुन्दरकाण्ड पाठ के नियम:-
यदि आप अकेले सुन्दरकाण्ड का पाठ करना चाहते हैं तो प्रात:कालीन समय, ब्रह्म मुहूर्त में 4 से 6 बजे के बीच किया जाना चाहिए।
यदि आप समूह के साथ सुन्दरकाण्ड का पाठ कर रहे हैं तो शाम को 7 बजे के बाद किया जा सकता है।
सुन्दरकाण्ड का पाठ मंगलवार, शनिवार, पूर्णिमा और अमावस्या को करना श्रेष्ठ रहता है।
सुन्दरकाण्ड का पाठ करते समय इसकी पुस्तक को अपने सामने किसी चौकी या पटिए पर स्वच्छ कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए।
इसकी पुस्तक को कभी भी जमीन पर या पैरों के पास नहीं रखना चाहिए।
सुन्दरकाण्ड का पाठ अपने घर के स्वच्छ कमरे में या मंदिर में किया जा सकता है।
पाठ प्रारंभ से पूर्व हनुमान जी का आह्वान एवं समापन पर विदाई अवश्य क.
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